दिवाली कविता
ये दिये भी कमाल के है
ये दिये भी कमाल के है
इधर के नहीं उधर के नही
जाने ये किधर के है
इनका कोई मकां नहीं
पर जिस मकां को गये मकां कर गये
पूरा घर रौशनी से भर गये
ये दिये भी कमाल के है ||
जब जब प्रभु श्री राम के कदम पड़े
दीयोे की भीड़ उमड़ पड़े
जशन बन जाते किसी की जिंदगी का
इक उजाला दिया किसी की दिवाली का
रूखी गलियों में सावन की हरियाली का
शाम ढ़ले दिया सबकी खुशहाली का
इक हौसले के चराग ने कतारे लगा दिए
रौशनी के सैलाब ला दिए
ये दिये भी कमाल के है ||
सौंधी सी खुुश्बू वाली मिट्टी की दिये
रिश्तों को सदियों से महकाते रहे
मिलो की दूरियां, पास लाते रहे
दूर महल वालो को
बचपन के घरौंदे दिखाते रहे
अम्मा बापू को उनके आँख के
तारे दिखाते रहे
आफ़्ताब हैं महताब हैं
पर अमावस के आगे
तो बस दियो ने सर उठाये हैं
ये दिये भी कमाल के है ||
क्या अलामत है इनके भी...
ज्वालो में तपते रहे
दाग चेहरे पर लगते रहे
आगोश में उनके अधेरा पलते रहे
पर औरों के जहां रौशन कर गए
रास्ता उन्हें सदा दिखाते रहे
ये दिये भी कमाल के है ||
रवि कुमार
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