🔥क्रांति है ये क्रांति, विचार क्रांति🔥
बरसो-बरस जो प्रदीप्त हुआ करती थी
अखण्ड, अविचल और उदात्त हुआ करती थी
कालंतर की बेला फिर आयी
धुर्त लोभियो के मथ्थे खटक गयी
पाखण्डी गुर्गो के हथ्थे चढ़ गयी
कुछ अपनो ने भी कुठाराघात लगायी
क्रांति है ये क्रांति, विचार क्रांति।।
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सोई दिव्य प्रभुत्वो पर, किरण अब पड़ने लगी है
वो शौर्य, वो वीर, वो भवानी फिर जगने लगी है
बदजुमानी जो दिखाई सरेआम सिया जायेगा
आंचल पर छीटें अब न सहा जायेगा
सुना है सिंहस्थ मांद, पालो न ये भ्रांति
क्रांति है ये क्रांति, विचार क्रांति ।।
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जिस्म फरोखी, अश्लीलता की तुतरी न बजाओ
फिल्मीस्तान जरा सुनलो, कौड़ियों के दाम युं न बिको
ऊंगली तुम पे उठने लगा है
ये जनार्दन सब समझने लगा है
ओ सुनलो मधु वाचको
कथा विस्तारको
धर्म की सेवा करो
पहरेदारी करो ठेकेदारी नहीं
न बहावों की खेप है, न कोई व्यतिरेक है
हो रही जागृत अब स्वविवेक है
और कान तो तुम भी खोललो दो मुहे सर्पो
तुने भी दगा का दाग ले रखा है,
बेवफाई का तमगा ओढ़ रखा है
मैं भी धरा पुत्र हूँ
प्रेम का प्याला पी रखा है
लौटेगी वही उन्नत, वही आभा, वही भारतवर्ष कांति
क्रांति है मनु पुत्रो क्रांति, विचार क्रांति ।।
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✍️ रवि कुमार साहू
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