google-site-verification=rm70XEMbxZyoRS7xtCfISNAPDIK_x3QyPbKOZd13PUc मैं सड़क हूँ ~ shayarvats

मैं सड़क हूँ

मैं सड़क हूँ

यह ड़क पर एक मार्मिक कविता है  जिसकी शुरुआत सड़क पर चलते-चलते ही हुआ था सड़क का नाम लेते ही सहस : लंबी चौड़ी बांहे फैलाये हुए खुबसूरत सा रास्ता या पतली  पथरीली पगडंडी दृश्यीत हो उठती है, कुछ लोगों को संजय दत्त वाली सड़क भी याद आ जाती है 🤣
हम सभी प्रति दिन अपने लक्ष्यित स्थानों  तक इन्ही सड़कों के सहारे पहुंचते हैं जिस पर कई एछिक अनैच्छिक घटनाएं होती रहती है इन्हीं घटनाओं  का  मानवीय वर्णन कवि ने किया है। 😜

⇒ मेरे भी कई अफ़साने हैं, मेरे कई फसाने हैं 
मैं अनंत हूँ, मेरी न कोई सीमाएं हैं 
लोग चाहे जहां तक, इस्तेमाल मैं होता हूँ 
 जनाब मैं एक सड़क हूँ।। 
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चलते है मुसाफिर... 
कुछ मस्त मौले से, 
हंसते गाते गुनगुनाते
मीठी मीठी तान मुझे सुनाते
कुछ... धीर से गंभीर से शांत और मौन 
अंतर्मन से खेलते 
खाब की स्वेटर बुनते 
हाल-ए-बयां सबकी सुनता हूँ 
जनाब मैं हमराही सड़क हूँ।। 
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 कहीं खूबसूरत रंग बिरंगी अतरंगी सी हूँ 
कहीं दुराचारी भ्रष्टाचारी की भेंट चढ़ी हूँ 
बेसहारों का बसर हूँ मैं 
बेदर्दों का हमदर्द हूँ मैं
बे-लगाम, बेपरवाही, बुजदिली जब मुझमें दौड़ती है 
बेगुनाह, बेजुबान से जब टकराती है 
दर्द उनके कानों में गूंज उठती है
 एक भारी-सा आह! लिए मुझ में दम तोड़ जाती है 
उनके अश्क, उनके खून... 
एक बार फिर मैं दागदार हो जाती हूँ 
जनाब मैं हमदर्द सड़क हूँ।।
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        // ✍️रवि कुमार साहू //
      



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